HOW विश्व का इतिहास CAN SAVE YOU TIME, STRESS, AND MONEY.

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प्राचीन भारत की जानकारी के सम्बन्ध में स्मारक अति महत्वपूर्ण है, इन स्मारकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – देशी तथा विदेशी स्मारक। देशी स्मारकों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नालंदा, हस्तिनापुर प्रमुख हैं। जबकि विदेशी समारकों में कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर, इंडोनेशिया में जावा का बोरोबुदूर मंदिर तथा बाली से प्राप्त मूर्तियाँ प्रमुख हैं। बोर्नियों के मकरान से प्राप्त मूर्तियों में कुछ तिथियाँ अंकित हैं, यह तिथियाँ कालक्रम को स्पष्ट करने में काफी उपयोगी हैं। इन स्त्रोतों से प्राचीनकाल की वास्तुकला शैली के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

मध्यकालीन भारतीय इतिहास को जानने के स्त्रोत

(ख) ग्रहण में मण्डल ही चंद्रमा पर गोलाकार छाया प्रतिबिंबित कर सकता है तथा

विस्तार से जानकारी हेतु देखें उपयोग की शर्तें

ítíhā́sasyá cá vai sa púrā́ṇasyá cá gāthā́nā́ṃ cá nā́rāśaṃsīnā́ṃ cá príyaṃ dhāmá bhávátí ya évaṃ vedá.

पू. पहली शताब्दी में आरंभ हो चुकी थी। इन जातकों का महत्त्व केवल इसीलिए नहीं है कि उनका साहित्य और कला श्रेष्ठ है, प्रत्युत् तीसरी शताब्दी ई.पू. की सभ्यता के इतिहास की दृष्टि से भी उनका वैसा ही ऊँचा मान है।

अभी तक विभिन्न कालों और राजाओं के हजारों अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं जिनमें भारत का प्राचीनतम् प्राप्त अभिलेख प्राग्मौर्ययुगीन पिपरहवा कलश लेख (सिद्धार्थनगर) एवं बंगाल से प्राप्त महास्थान अभिलेख महत्त्वपूर्ण हैं। अपने यथार्थ रूप में अभिलेख सर्वप्रथम अशोक के शासनकाल के ही मिलते हैं। मौर्य सम्राट अशोक के इतिहास की संपूर्ण जानकारी उसके अभिलेखों से मिलती है। माना जाता है कि अशोक को अभिलेखों की प्रेरणा ईरान के शासक डेरियस से मिली थी।

फुतूह-अस-सलातीन के लेखक ख्वाजा अब्दुल मलिक इसामी थे।

सब कुछ लगातार सुधार के साथ प्रगति। सभी युगों के लोगों ने महान उपलब्धियां हासिल की हैं औरभयानक गलतियाँ कीं; इसलिए ऐतिहासिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं को सरल के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है प्रगति या प्रतिगमन। ऐतिहासिक प्रक्रियाओं में परस्पर संबंधित कारकों के बीच जटिल संबंध शामिल होते हैं।

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अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- शिलालेख, स्तंभलेख और गुहालेख। शिलालेखों और स्तंभ लेखों को दो उपश्रेणियों में रखा जाता है। चौदह शिलालेख सिलसिलेवार हैं, जिनको ‘चतुर्दश शिलालेख’ कहा जाता है। ये शिलालेख शाहबाजगढ़ी, मानसेहरा, कालसी, गिरनार, सोपारा, धौली और जौगढ़ में मिले हैं। कुछ फुटकर शिलालेख असंबद्ध रूप में हैं और संक्षिप्त हैं। शायद इसीलिए उन्हें ‘लघु शिलालेख’ कहा जाता है। इस प्रकार के शिलालेख रूपनाथ, सासाराम, बैराट, मास्की, सिद्धपुर, जटिंगरामेश्वर और ब्रह्मगिरि में पाये गये हैं। एक अभिलेख, जो हैदराबाद में मास्की नामक स्थान पर स्थित है, में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त check here गुजर्रा तथा पानगुड्इया (मध्य प्रदेश) से प्राप्त लेखों में भी अशोक का नाम मिलता है। अन्य अभिलेखों में उसको देवताओं का प्रिय ‘प्रियदर्शी’ राजा कहा गया है। अशोक के अधिकांश अभिलेख मुख्यतः ब्राह्यी में हैं जिससे भारत की हिंदी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती और मराठी, तमिल, तेलगु, कन्नड़ आदि भाषाओं की लिपियों का विकास हुआ। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पाये गये अशोक के कुछ अभिलेख खरोष्ठी तथा आरमेइक लिपि में हैं। ‘खरोष्ठी लिपि’ फारसी की भाँति दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी।

तक की घटनाओं का वर्णन है। तीसरे भाग में तत्कालीन सूफियों, विद्वानों, हकीमों एवं कवियों की जीवनियां हैं। यह ग्रंथ ‘तारीखे-मुबारकशाही’ तथा ‘तबकाते अकबरी’ को आधार बनाकर लिखा गया है। इसका महत्त्व इसलिए है, क्योंकि इससे अकबर के शासनकाल के दूसरे पहलू का ज्ञान होता है। तुजुक-ए-जहांगीरी[संपादित करें]

अंग्रेजो के अत्याचार से परेशान लोग अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने लगे। अधिकांश भारतीय विद्रोहियों ने बहादुर शाह ज़फर को भारत का राजा चुना और उनके अधीन वे एकजुट हो गए। अंग्रेजों की साजिश के सामने वो भी नहीं टिक पाए। उनके पतन से भारत में तीन सदी से ज्यादा पुराने मुगल शासन का अंत हो गया।

शाहजहाँ की शासन-प्रणाली एवं उसकी कार्यप्रणाली के विषय में चंद्रभान ब्राह्मण रचित चहार चमन से विशेष जानकारी मिलती है। 

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